आज देश में संबिधान की मर्यादा भी डोल गयी
आज देश में संबिधान की मर्यादा भी डोल गयी ।
अनुच्छेद व अनुसूची का काला दर्पण खोल गयी ।
मानवता भी शर्मसार है ऐसे चन्द दलालों से ।
नारी का चौराहों पर सम्मान कुचलने वालों से ।
जो तलाक को गुड्डे गुड़ियों का बस खेल समझते हैं ।
वे समाज की सीमा के अंदर कैसे रह सकते हैं ???
जिनको मानवता की सीमा का उल्लंघन भाता है ।
जिनको केवल अपने दिल का दर्द समझना आता है ।
नारी जिनके खातिर केवल किसी खेल का हिस्सा है ।
सादी और तलाक चार लमहों का कोई किस्सा है ।
जिनको रिश्ते नातों की परिभाषा तक का ज्ञान नहीं ।
उनके लिए हृदय में मेरे थोड़ा भी सम्मान नहीं ।।
ऐसा भी क्या धर्म जहाँ नारी का कुछ सम्मान न हो ।
धर्मग्रंथ के पन्नो में इसका कोई भी ध्यान न हो ।
जब विवाह समझौते के सम्बन्धो पर टिक जाते हैं ।
रिश्ते भी अनुबंधों के तटबंधों पर टिक जाते हैं ।
जब तलाक कह देने भर से नारी बेघर हो जाये ।
पुरुषों की मनमानी से जीवन भर वह ठोकर खाये ।
जब तलाक जैसे मुद्दे बाजारों में आ जाते हैं ।
घर की चौखट के झगड़े अखबारों में छा जाते हैं ।
तब समाज की ऐसी सत्ता में बदलाव जरूरी है ।
सदियों के ऐसे नासूरों में इक घाव जरूरी है ।।
नारी का सम्मान अदालत की, चौखट पर ठहरा है ।
किन्तु देश का संबिधान तो इस मुद्दे पर बहरा है ।
पूछ रहा हूँ आज ज्ञान के मद में चूर गँवारो से ।
धर्म जाति का सौदा करने वाले ठेकेदारों से ।
धर्म-धर्म का हर मुद्दे पर तुम क्यों शोर मचाते हो ।
सच तो ये है तुम तो केवल हठ का धर्म निभाते हो ।
क्या नारी का मान धर्म की सीमा ही तय करती है ।
क्या मानवता संवेगों के बिना कभी रह सकती है ।
बहुत हुआ ये पक्षपात की राजनीति अब बन्द करो ।
धर्म-धर्म चिल्लाकर ऐसी मूर्खनीति अब बन्द करो ।
धर्म अदालत के दरवाजों पर मोटे ताले डालो ।
संबिधान में नियम कड़ाई से चलने वाले डालो ।
संबिधान में किसी धर्म की कोई लूट नहीं होगी ।
जो मानवता को गाली दे ऐसी छूट नहीं होगी ।
आज अदालत से भारत का बड़ा फैसला आया है ।
सबसे बड़ी अदालत ने नारी का मान बढ़ाया है ।
टूट गयी पैरों की बेड़ी आंखों का काजल रोया ।
बड़े दिनों के बाद खुशी से फूट-फूट बादल रोया ।
रोई सांसो की चिंगारी दिल का भी लावा रोया ।
न्याय व्यवस्था पर यकीन का एक अडिग दावा रोया ।
अब मोबाइल पर तलाक के शब्द नहीं गुर्रायेंगे ।
बीबी को गाली देने में शौहर भी शरमायेंगे ।
आज धर्म की विजय कहानी गलियों में आबाद हुई ।
इस भारत की मुश्लिम नारी अब जाकर आजाद हुई ।।
राहुल द्विवेदी ‘स्मित’