आज जो कल ना रहेगा
आज जो कल ना रहेगा
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आज वासंती पवन है,
शुष्क कल हो जायेगा;
स्याह वो जो कल वही,
शाख से झड़ जायेगा !
, जिंदगी संग में सवेरा,
संग ले आती सदा;
नित्य ही दिनमान भी-
शाम बन ढह जायेगा !
क्षोभ पश्चाताप का ,
लोभ जीवन-प्राण का ;
मोह जड़ संसार की है-
कर्म पल्लव लायेगा !
शाख संतति वाहु कर-पद,
व्यस्न जनु व्यापार है ;
हानि ज्यों अन-अन जरापा-
मोक्ष त्यज संसार है !
मृत्यु ले जाये किधर यह,
कर्म का आरेख है ;
पाठ ज्यों लिखते गये-
सद्कर्म ज्यों कि सुलेख है!
तिलक-वंदन चारु-चंदन,
सिक्त अभि-अंग और मर्दन;
कण्ठ का अवरुद्ध -रोदन –
स्वाँस-रोध प्रत्यक्ष है!
जिंदगी ही मेल है ,
मेल बिन ये झमेल है ;
उत्तरोत्तर प्रगति है तो –
जिंदगी अठ-खेल है !
जो निराशा में जियेगा,
खाक क्या जीवन जियेगा !
सर्वहारा बन जिया जो –
युग-पुरुष मानक बनेगा !!
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आशु-चिंतन
@स्वरूप दिनकर, आगरा
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