बुजुर्गों की उपेक्षा आखिर क्यों ?
आज जिस तीव्र गति से इंसान सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहा है वह किसी से छिपा नहीं, इस सफलता ने इंसान की जीवन शैली को इतना व्यस्त कर दिया है कि उसके पास दूसरों के लिए तो क्या बल्कि स्वयं अपने लिए भी समय नहीं है, यही कारण है कि आज बड़ी संख्या में बुज़ुर्ग अकेले व बेसहारा हो रहे हैं, वह भी उस देश में जहाँ श्रवणकुमार जैसे पुत्र के उदाहरण हो, और जहाँ घर के बड़े बुजुर्गों को सम्मान ही नहीं दिया जाता बल्कि उन्हें भगवान तुल्य समझ कर उनको पूजने की प्रथा रही हो वहाँ पर बुजुर्गों का अनादर व तिरस्कार बेहद शर्मनाक और दुखद स्थिति है। लेकिन अफसोस.! बदलती सामाजिक व्यवस्था ने परिवार की अवधारणा को परिवर्तित कर दिया है, संयुक्त परिवार की व्यवस्था टूटने और एकांकी परिवारों की बढ़ती संख्या ने बुज़ुर्गों की सुरक्षा और उनकी स्थिति पर प्रश्न चिन्ह ही नहीं लगाया है बल्कि बुज़ुर्गों के जीवन को त्रासदी पूर्ण अवस्था में भी ला खड़ा किया है, आज स्थिति यह है कि आज उनके परिजनों द्वारा ही उन्हें नकारा और अपमानित किया जा रहा है तो कहीं उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया जा रहा है, इस प्रकार की दुखद घटनाओं की आये दिन खबरें अखबार में प्रकाशित होती रहती हैं, आश्चर्य और अफ़सोस तो इस बात पर होता है कि माता पिता के शोषण में बेटे बहू के साथ अब बेटियां भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है, इस उत्पन्न स्थिति पर मैं इतना ही कह सकती हूं कि केवल घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बुज़ुर्ग माता पिता के अधिकारों उनके सम्मान की वकालत करने या बच्चों को दंडित करने या आर्थिक सहायता के लिए नये नये कानून बनाने से कुछ नहीं होने वाला, कानून का भय बच्चों को माता पिता की आर्थिक सहायता के लिए विवश तो कर सकता है लेकिन बच्चों के मन में माता पिता के लिए कर्तव्य, त्याग, और सेवा की संवेदनाएं उत्पन्न नहीं कर सकता, जिसकी ज़रूरत वास्तव में माता पिता को होती है न कि पैसों की।
हमें इस वास्तविकता को अच्छे से समझना होगा कि प्रत्येक बुजुर्ग स्वयं में मूल्यवान है व गरिमापूर्ण ढंग से जीने का अधिकार रखते हैं, यदि आज हम अपने बुजुर्ग माता पिता के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करेंगे तो वैसा ही व्यवहार कल हमारे बच्चे भी हमारे साथ करेंगे, आवश्यकता तो आज परिवार, समाज और सरकार को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की है, वरना हो सकता है कि आने वाले समय में स्तिथि और भी जटिल हो जाये, इतनी जटिल कि फिर शायद इस समस्या के समाधान का हमारे पास कोई विकल्प ही न रहे सिवाये पछतावे के!
………………….डॉ फौज़िया नसीम शाद …..