आज गीदड़ भी शेर है,
*भिगा हुआ हु पर लिप्त नहीं,
किंतु “प्रेस के कोट” वाले दूर रहे !
शायद क्रीज खतरे में हो,
गंदा तो पहले से ही बहुत है,
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इतिहास को देखकर जीने वालों,
ताजमहल तो बना नहीं पाये,
जो साख है उसे तो संभाल लो,
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भक्त की कल्पना, मीरा के गीत,
बुद्ध का जागरण,
भक्ति आंदोलन में कबीर, रैदास आदि
सोए हुओं को तो जगा गए,
पर पाखंडी आज भी संग्रहालय में मौजूद है,
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पढ़े लिखे हो तो पढ़ जरूर सकते हो,
समझ नहीं सकते चाबी मेरे पास है,
Mahender Singh Author at