आज क्या बनाऊँ
पत्नी जी यदा कदा ही कहती हैं
कुछ समझ नहीं आता कि आज क्या बनाऊँ
बदले में जब मैं कहता हूँ
कि कुछ भी बना लो
तो उसका मूड ज्यादा खराब हो जाता है
बच्चों की फरमाइशें
फिजां में गूंजने लगती हैं।
पत्नी जी कुछ ज्यादा ही उखड़ जाती हैं।
और सामान्य दिनों के बजाय
उस दिन और देर में खाने का हुक्म सुनाती हैं,
मेरे जवाब से पहले खिचड़ी और चटनी
सामने लाकर रख देती हैं।
बच्चे भुनभुनाने लगते है
न खाने का एलान कर देते हैं।
पत्नी जी भी कम नहीं है
खाओ या भूखे सो जाओ कहकर
अपना पेट भरने में लगे जाती हैं
बीच बीच में खाना हो तो खा लो
बच्चों को कहती रहती हैं,
खिचड़ी की तारीफों के पुल बांधती रहती हैं,
मां हैं न तो परेशान भी होती हैं
बच्चे कहीं भूखे न हो जाएं
इसलिए अपने हाथों से उनके मुंह में
जबरदस्ती खिचड़ी ठूंसकर सूकून की सांस लेती हैं,
और वो बड़े गुस्से से मुझे घूरती हैं
इस तरह शायद अपने क्रोध को
विश्राम की अवस्था में ले जाती हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश