आज के हालात
न जाने क्या हुआ है अब, बताओ इस जमाने को।
लपकते जिस्म को ही अब,सभी क्यों नोच खाने को।
कहाँ है सभ्यता अपनी , कहाँ हैं रीतियाँ अपनी-
बने हैं धर्म सारे क्या, फ़क़त बातें बनाने को।
न जाने क्या हुआ है अब, बताओ इस जमाने को।
लपकते जिस्म को ही अब,सभी क्यों नोच खाने को।
कहाँ है सभ्यता अपनी , कहाँ हैं रीतियाँ अपनी-
बने हैं धर्म सारे क्या, फ़क़त बातें बनाने को।