आज के दोहे
01 चलो सखी अब साथ में ढूंढे बरगद आम ।
तन मन भीगा स्वेद से ,पसरी चहुँ दिशि घाम ।।
.02 बहुत बावरी ग्रीष्म ऋतु ,झुलसा देत शरीर।
जग खारा सब स्वेद सम ,मन नित होत अधीर ।।
03 हार जीत तो ठीक है , लोकतंत्र का अंग।
बैर भाव घृणा मिटे ,रहें प्रेम से संग ।।
04 न वसन्त से रोष है , न पतझड़ से प्यार ।
रंगमंच पर दिख रहे , भिन्न भिन्न किरदार।।
05 कंचन सी कामायनी , हिरनी जैसे नैन ।
मुखमण्डल मन मोहनी ,संग सजीले सैन।।
06 पैसा पैसा रात दिन ,पैसे का गुणगान ।
दो कौड़ी में बिक रहा ,देखो नित इंसान ।।
07 गोरे काले रंग से ,क्या निकले अंजाम ।।
गोरे मुखड़े के दिखे ,कितने काले काम।।
08 कोई मजहब हो प्रिये ,सबकी सीख समान
हिन्दू मुस्लिम बाद में , पहले हिंदुस्तान
09 . कुर्सी पा मत भूलना ,धर्म, प्रेम ,बलिदान।
अपने जैसा समझना ,औरों का सम्मान ।।
10. वर्षो से करता नहीं बेटा माँ से बात ।
ऐसी अजब विडम्बना व्रत रखता नवरात।।
11. नारी का अपमान नित , अरु अनुचित व्यवहार ।
मंदिर जा कर कर रहे,माँ की जय जय कार ।।
12 चील उड़ी कौआ उड़ा , बचपन उड़ा मलाल ।
लोरी ,गोदी सब उड़े , बस गूगल जंजाल।।
13 शिल्प,भाव अनिवार्य है, रचने कविता गीत ।
हिय की कोमलता भरे , लेखन में नवनीत ।।
14 थोड़ी सी तारीफ में जो भूलें , औकात ।
पाण्डे ऐसे लोग ही करते , ओछी बात ।।
15
भादों सावन हो गए , सबके दोनों नैन ।
नेत्र तीसरा क्वार का , करे कृषक बेचैन।।
16 जिस घर में माता पिता , रहते सदा उदास।
मरघट है वह घर नहीं , भूतों का है वास ।
17 रोज रोज के प्रश्न से , विक्रम है बेहाल ।
गूगल देवा कुछ करो , निष्ठुर है वेताल ।।
18 आजादी के बाद भी , देश दिखे बेहाल
यही प्रश्न करता रहा , विक्रम से बेताल ।।
19 कविता का ऐसा नशा , छाया है चहुं ओर ।
पांडे मंचो पर दिखे , विदूषकों का शोर ।।
20 मात पिता के रूप में , घर में चारों धाम ।
सेवा नित करते रहो , पूरे हों सब काम ।।
21 लाल किला कहता रहा ,आश्वासन की बात ।
प्रतिभा के सपने छिने ,नव कलियों के गात ।।