आज कुछ
आज कुछ बौने बड़े होने लगे हैं ।
बगल में आकर खड़े होने लगे हैं ।।
रोज सुबह ओ शाम कदमों में रहे ।
सरों पर हीरे जड़े होने लगे हैं ।।
कल तक थे केंचुओं से पिल पिले ।
अब मग़र वो कुछ कड़े होने लगे हैं ।।
उग गईं इन पर हरी शैवाल अब ।
घर के दरवाजे सड़े होने लगे हैं ।।
दौड़ने वाले लचक कर चल रहे ।
पाँव में काँटे गड़े होने लगे हैं ।।
पत झड़ों का दौर है यह इसलिए ।
पेड़ से पत्ते झड़े होने लगे हैं ।।
आग के गोले हुआ करते थे जो ।
आजकल ठंडे घड़े होने लगे हैं ।।