आज की बेटी
है अग्रसर देश मेरा
पर आज की बेटी कहां है
खुद की आवाज बनती
खुद बिखरती खुद संवरती
पर आज की बेटी कहां है
है ज्वलित हर मुद्दा यहां
खोदता हुआ गड़ा मुर्दा यहां
पर आज की बेटी कहां है
न पक्ष न कोई विपक्ष है
बह रहा स्त्री का दर्द है
पर आज की बेटी कहां है
खोजती रही झरोखों में उजाले
आज के सूरज को देखा कहां है
पर आज की बेटी कहां है
-सोनिका मिश्रा