आज की नारी..।
आज की नारी..।
सुनो न…।
सुनो न,सुनती हो..
अरे रूको तो..
कब तक भागती रहोगी
घड़ी के काँटों की तरह
निरंतर लगातार
दो घड़ी साँस तो ले लो
अरे सुनो तो…अब सुन भी लो
तुम्हें पता नहीं शायद
यह चौबीस घंटे टिक टिक
करती घड़ी की सुई भी
एक क्षण को रूक जाती है
पर तुम हो कि ठहरने का
नाम ही नहीं लेती
ठेका ले रखा है अनवरत
भागते रहने का
कभी मुन्ने का नाश्ता
कभी मुन्नी का दूध
कभी सास की दवा
तो कभी ससुर की चाय
कभी देवर की जरूरतें
तो कभी ननद की फरमाइशें
कभी बाबूल की याद
तो कभी ससुराल की बंदिशे
और रात जब होता है दो घड़ी तुम्हारे पास
तो दिन भर फर्ज निभाते निभाते
लग जती हो कर्ज उतारने में
पत्नी धर्म का,एक औरत होने का
ऊपर से तुम्हारा यह नया नया
शौक पाल लेना
कामकाजी महिला होने का
बड़ी अजीब हो गई हो तुम
न ख़ुद के लिए तुम्हारे पास समय है
न समय के लिए थोड़ा समय
कभी कभी तो सोचता हूँ
ईश्वर ने तुम्हें तो हाड़ -मांस के
एक आम इंसान की तरह
एक औरत का ही रुप दिया था
पर शायद हम इंसानों ने ही
तुम्हें जीती जागती मसीन बना दिया
जो चलती रहती है
भागती रहती है चौबीस घंटे
किसी घड़ी की सुइयों की तरह
स्वयंचालित प्रणाली से
अनवरत निरंतर बिना रुके बिना थके.
विनोद सिन्हा-“सुदामा”
स्वरचित-२५/११/२०१७