*परिमल पंचपदी--- नवीन विधा*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
मैंने प्रेम किया और प्रेम को जिया भी।
ग़ज़ल __न दिल को राहत मिली कहीं से ,हुई निराशा भी खूब यारों,
ॐ
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
थियोसॉफिकल सोसायटी की एक अत्यंत सुंदर *यूनिवर्सल प्रेयर* है जो उसके सभी कार्यक्र
जीवन में कुछ करते रहो , एक जगह रहकर भी अपनी उपलब्धियों का अह
पौधे दो हरगिज नहीं, होते कभी उदास
जिसका जैसा नजरिया होता है वह किसी भी प्रारूप को उसी रूप में
आपके बाप-दादा क्या साथ ले गए, जो आप भी ले जाओगे। समय है सोच
जो रास्ते हमें चलना सीखाते हैं
समय न मिलना यें तो बस एक बहाना है
महिला दिवस विशेष -कारण हम आप हैं
लोकतन्त्र के मंदिर की तामीर बदल दी हमने।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
“तुम हो जो इतनी जिक्र करते हो ,
पिता का पेंसन
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)