आज का सुकरात
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
जाने कैसा था
वह कल का कालचक्र
सोचता हूँ अपने हाथों
कर लिया विषपान जो
सोचता हूँ डर गया होगा
समय की घात से
वह विचारक
मर गया जो
धार्मिक आघात से
मैं कवि हूँ
कल्पना ही मेरा जीवन
सोचता हूँ
मैं पुरुष
आज का सुकरात हूँ
मैं किसी की माँग पर
विषपान कर सकता नहीं
अपने हाथों ही कदापि
मैं तो मर सकता नहीं
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सरफ़राज़ अहमद “आसी”