आज का दौर
जाने किस दौर में हम जी रहे हैं ?
एक दूसरे की गलतियां निकाल कर लड़ रहे हैं ,
एक शातिर चोर दूसरे को लूटेरा कह रहा है ,
दूसरा फ़रेबी धर्म और आस्था के नाम पर
अपना घर भर रहा है ,
नेता वोट के लिए जनता को बहका कर
अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं ,
लोग भी गुटों में बंटकर चंद प्रलोभन के लिए
उनका गुणगान कर रहे हैं ,
व्यक्तिगत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहीं
क़ैद होकर रह गई है ,
समूह मानसिकता देश में
सर चढ़कर बोल रही है ,
आम आदमी सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में
असुरक्षित महसूस कर रहा है ,
न्याय प्रणाली में फैले भ्रष्टाचार से उसका
विश्वास न्याय व्यवस्था से उठ गया है ,
तिस पर लोगों की जमा पूंजी लूटने के लिए
रोज नये षड्यंत्र रचे जा रहे हैं ,
और हम लोगों को लुटते- पिटते
मूकदर्शक बने तमाशा देख रहे हैं ,
देश का युवा बेरोजगारी की मार
झेल रहा है ,
मजबूरन गलत रास्ते पर चलने
बाध्य हो रहा है ,
शिक्षा का स्तर दिनों दिन नीचे
गिरता जा रहा है ,
अपनी रोजगार से संबद्ध प्रामाणिकता
खोता जा रहा है ,
महंगाई की मार चरम सीमा पर
पहुंच गई है ,
आम आदमी के लिए दो जून रोटी की
मुश्किल हो गई है ,
आतंकवादी प्रपंचों से देश की
सुरक्षा एवं संप्रभुता
खतरे में पड़ी हुई है ,
एकीकृत विदेश नीति के अभाव में
वैश्विक स्तर पर देश की अस्मिता में
ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है ,
व्यक्तिगत स्वार्थ एवं चाटुकारिता का बोलबाला है ,
सत्य , सद्भावना एवं सदाचार का मुँह काला है ,
लगता है हम किसी दिवास्वप्न में जी रहे हैं ,
अच्छे दिनों के इंतज़ार में ये हलाहल पी रहे हैंँ ।