आज कविता भी कस्टोमाइज्ड हो रही है
“व्यंग गीत ”
मापनी -२५ मात्रा
आज कविता भी कस्टोमाइज़्ड हो रही है।
चाहे’ अनचाहे अपना परिवेश खो रही है।
मंचों से चिल्लाते हैं, ताली बजाते हैं।
सोशल मीडिया पर खूब शोहरत पाते हैं।
चुटकुले पढने वाले कहतें हैं खुद को कवि
और कविता खुद खून के आंसूं रो रही है।
आज कविता ————————
काव्यमंचों पर हो रहे है नित नव गठजोड़,
तथाकथित कवि कर रहे शब्दों में जोड़तोड़।
हँसी – -ठिठोली ही पा रहे हैं वरीयताएं-
मौलिककविता अपना स्थान को खोज रही है।।