मेरे’ ईश्वर बता तू ये’ क्या हो रहा है।
२१२ २१२ २१२ २१२२
आज दुनिया ये सारा वतन रो रहा है।
मेरे ईश्वर बता तू ये क्या हो रहा है।
बेचते मौत को खैरख्वाह’ देश के ही,
ल्हाश का ही वजन खुद वतन ढो रहा है।।
मिल रहे राह में खार-कांटे घनेरे,
पैर खुद के पड़े जो स्वयं बो रहा है।
रौशनी जो मिली थी बशर को जहां से ,
आज अपनी बदौलत स्वयं खो रहा है।
अंध सी दौड में ही लगा जो कभी था,
आज आंखें हुईं बंद वो सो रहा है।