आजा सांवरिया
चूड़ी की मौन हुई खन- खन, कँगना भी ज़िद पे आया है।
झुमका भी राह तके मोहन,अँखियों ने जल बरसाया है।।
अब तो आजा रे साँवरिया! सावन का महिना आया है।
रुनझुन पायल कह के हारी,बिछिया ने भी समझाया है।
काटे से कटती नहीं विरह,मनवा पे ग़म का साया है।।
अब तो आजा रे साँवरिया! सावन का महिना आया है।
तेरे बिन शुष्क हुई बगिया,अँसुवन लिख भेज रही पतिया।
बैरन कोकिल बोली लागे,सौतन सी लागे बाँसुरिया।।
अब तो आजा रे साँवरिया! सावन का महिना आया है।
रोती रिमझिम बदरा बूँदें, बिजली ने ज्यों धमकाया है।
बागों में सखियाँ रे झूलें!,पर साजन तु नहीं आया है।।
अब तो आजा रे साँवरिया! सावन का महिना आया है।
नीलम शर्मा ✍️