आजा रे तू काले बदरा, ले घनघोर घटा रे।
? ? ? ? ?
आजा रे तू काले बदरा ,ले घनघोर घटा रे।
जीवन में खालीपन घेरा ,सूखा नीर नयन रे।
नाम अधर पर तेरा रहता ,हर पल मनभावन रे।
गरज-गरज कर उमड़-घुमड़ कर ,बरसो बन सावन रे।
नीले-नीले आसमान में ,इंद्रधनुष सा छा रे।
मेरे मन की पीड़ा हर ले ,थोड़ा नीर बहा रे।
विरह अश्रु छुप जाय,छुपाना, बादल तुम आना रे।
आजा रे तू काले बदरा ,ले घनघोर घटा रे।
चातक बना निहारे नैना ,आंखें पथराई रे।
बेबस मनवा मुझ विरहन की ,पल-पल घबराई रे।
मूक बनी सी दूर क्षितिज में ,देखूँ सजल नयन रे।
आमंत्रण दे रही तुम्हें मैं ,अंतस लगी अगन रे।
किसको व्यथा सुनाऊँ अपनी ,मन को कुछ समझा रे।
आजा रे तू काले बदरा ,ले घनघोर घटा रे।
अँखिया थक गई बाट जोहते ,सूना मन आँगन रे।
फिर भी आस लगी दर्शन की ,बाट तकूँ साजन रे।
झूठे-मूठे ढ़ाँढस देकर ,कब तक बहलाऊँ रे।
कुशल क्षेम जानूँ मैं कैसे ,ह्रदय धीर पाऊँ रे।
मिलने मुझसे अब आ जाओ ,दिल को ना तड़पा रे।
आजा रे तू काले बदरा ,ले घनघोर घटा रे।
श्याम -श्याम मतवाले बादल ,आसमान से आ रे।
तपती हृदय शुष्क मन मेरा ,शीतल जल बरसा रे।
निरीह अकेली मन बावरा ,कुछ संदेशा ला रे।
बड़ा निर्मोही है सांवरा ,प्रीत रंग बरसा रे।
परदेसी प्रियतम को लेकर ,जल्दी घर आजा रे ।
आजा रे तू काले बदरा ,ले घनघोर घटा रे।
? ? ? ? – लक्ष्मी सिंह ? ☺