आजाद ख्याल
कैसे उससे कहूं मैं अब कुछ समझ नहीं आ रहा है
जो खुद समझ पाया नहीं वही मुझे समझा रहा है
कल ख्वाबों में तुम आई थी मेरे, और हुई कुछ झड़प
जानें कितने दिनों से चुप थी, बहुत थी तुममें तड़प
यूं ठहर जाओ तुम कि अपना जी अब कहीं लगता नहीं
आंख भर जाती है मेरी मगर यह दिल मेरा भरता नहीं
तुम्हारी वह अधूरी शेर को पढ़के रुक जाता है “शिवा”
तुम्हारी याद ना मिट जाए उस शेर को पूरा करता नही
© अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
@shrivastava_alfazz