आजादी
निज स्वार्थ और श्रेष्ठता के मद में डुबे हुवे
क्या तुम्हें आजादी की अनुगूँज सुनाई देती है
कोई विराग नहीं कोई विच्छेद नहीं….
क्या कानों में सुधावर्षण करती है??
तुम्हारा अस्तित्व नहीं के बराबर था
जब पराये देश की बेदर्द हवा साँसो में घुलती थी।
याद करो उन वीरों को ….आजादी पाने को
कितनों ने अपने प्राण दिये….
गुलामी के भीषण थपेड़ो से
कितनो के घर बर्बाद हुवे।
माँ के नेत्र छलछलाये थे
क्षीण कंठ अवरुद्ध हुआ था|
आँखो से जल की अवधारा बही थी
दबी हुई चेतना पर जब आघात हुआ।।
पृथ्वी पर उन वीरों की पद-धूली क्या तुम्हे दिखती है?
निर्विकार हृदय में उनके लहू की दाग पड़ती है?
आँखो से कुहरे का पर्दा अब तो हटाओ
तिमिर में दीप जला….
शांति का सुखमय सबेरा अब तो लाओ!
जय हिंद
– रंजना वर्मा