आजादी
आता हुआ कोई साया लगे कहीं
दूर तलक है रोशनी जिसकी
सालों बाद कुछ साफ दिखा
इन आंखों पर अब तक था कुहरा घना
बात अब तक मेरी दीवारों ने सुनी
आज अचानक आवाज लोगों तक गई
वह दीवारें टूट गई या आवाज बदल गई
बौखला गई , यह क्या हुआ क्या मैं आजाद हो गई
कैसे जिऊंगी अब इस दुनिया में सोच सोच घबरा गई
सांसे थम सी गई खुली हवा में सांस लेना तो सीखा ही नहीं
लोगों को आपस में खुश देख मैं रोने लगी
हाय मैं यह कहां आ गई
यह लोग अब तक क्यों मुझे मासूमियत से देख रहे हैं
इनका अब तक मुझ पर कोई जुल्म क्यों नहीं
खुश होना कभी न जाना दुख को अपना सब माना
आज मेरे पैरों में बेड़ियां नहीं
यह कदम मैं खुद से चल पा रही ।
शायद यह दूसरा जहां है जो मेरे लिए बना है शायद यह दूसरा जहां है जो मेरे लिए बना है