आजादी
588• आजादी
आजादी का एक और दिवस, आज देख लो आया है
पर कैसी किसकी है आजादी,देख यह जनमन रोया है
गए फिरंगी, राज है अपना, एक लंबा अरसा बीत गया
वही हैं थाने, वही कचहरी, क्या लगता क्या बदल गया
सत्ता के लोभी, भ्रष्टाचारी, कुछ रोज नए नाटक रचते हैं
जनता की चुनी सरकारों को भी काम नहीं करने देते हैं
नित नए बहाने खोज-खोज, हर रोज झगड़ते रहते हैं
खुद सत्ता में होते हैं कभी , तब लूटपाट करते रहते हैं
उनके भ्रष्ट आचरण से हरदम,भारत माता भी त्रस्त हुई है
गरीबी हटने का नारा सुनकर, जनता बरसों से ठगी गई है।
आजाद देश की सरकारें, अगर बरसों तक बेहतर थीं,
तो स्कूल,अस्पताल,सड़क,अबतक क्यों इतनी कम थीं?
दवा, शिक्षा और रोजगार की, दशा क्यों ऐसी बनी रही?
वहीं गरीबी को देखो तो, अब भी है लगभग वहीं खड़ी
पी एल 480 का गेहूँ,क्यों खाने को जनता मजबूर रही?
गैस की भारी किल्लत इतनी थी, मीलों लाइन लगी रही।
नेताओं के परिवार देखिए, वर्षों में लाख करोड़ जुट गए
जिस जनता के नाम सियासत थी,वे धूल फाँकते रह गए
जनहित का रोना रोने वाले,देखो किस कदर कुबेर बने हैं
धोखे से मत पाने वालों के परिवार देख लो कहाँ खड़े हैं!
जनता को सपने दिखा-दिखा, अपना घर सब भरे हुए हैं
अरबों-खरबों लूट देश का, कुनबे की राजनीति करते हैं।
कुछ भैसों ने अमृतवर्षा की, अरबों का व्यापार हो गया
कुछ खेतों में सोना निकला,कृषि- आय का ढेर लग गया
कोई महिला लक्ष्मी निकली, धन का पर्वत खड़ा हो गया
कहीं तो भाई,पुत्र, भतीजा, रातों रात राजकुमार बन गया
कहीं तो सूती साड़ी चप्पल, जनता फिर क्यों हैरान रही ?
साड़ी-चप्पल,हीरे-मोती, गिन-गिन कर जनता बेहाल रही।
कहीं तो फोन पर बैंक लुट गए,नेता का मुंह बंद रह गया
भोपाल गैस उन्नीस सौ चौरासी, एंडरसन कैसे भाग गया?
कोई तो हीरो ऐसा निकला, प्रधानमंत्री ही बन सकता है
कोई तो अपने खानदान को, हमारा सारा देश लिख गया
दुश्मन को दिया देश की धरती, उसका कोई क्षोभ नहीं है
कश्मीर में कत्ले-आम हुए, तनिक भी उसका रोष नहीं है
छोटी-छोटी बातों पर जो, नेतागीरी के अश्रु बहाते रहते हैं
जब भी अवसर जहाँ भी मिलता,चुपके से देश लूट लेते हैं
भ्रष्टाचार के बड़े मुकदमे, न्यायालय में चलते रहते हैं
बेशर्म चेहरे लेकर अपने, ज़मानत पर राजनीति करते हैं।
गिनती के देश के नेता सच्चे, सुभाष, पटेल, शास्त्री जैसे
धोखेबाजों की कभी पसंद न थे, कुछ रहस्यमय चले गए
भ्रष्ट-अभ्रष्ट के संघर्षों में ही, धर्म-अधर्मी राज़ छिपा है
जन-गण की सोच-समझ में,गरीब के सर का ताज छिपा है
चाबी जनता के पास अभी भी, अपने हित का ख्याल करे
बिन लालच , बिन बहकावे के, देश के हित मतदान करे।
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—राजेंद्र प्रसाद गुप्ता,मौलिक/स्वरचित,14/08/2021•