आजादी विचारों की
आजादी विचारों की…
रस्मों रीवाज़ो को तू माने बंधन
रिश्तों का आधार कैसे बुन पाएगा
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
इस बंधन का महत्व तब ही जान पाएगा ।
संस्कार लगने लगे हैँ तुझे रूढ़ीवादी
लफ़्ज़ों में कहाँ से अदब लाएगा
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
शब्दों से ही दुनिया जीत पाएगा ।
ज़मीन के टुकड़ों में तूने बांट लिया घर
आंगन की अहमियत क्या समझ पाएगा
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
वास्तविकता से रूबरू तब ही हो पाएगा ।
मा बाप के चरणो मे झुकना तुझे अब मंज़ूर नहीं
खुदा से कैसे नज़रे मिलाएगा
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
धरती पर स्वर्ग तब ही महसूस कर पाएगा ।
प्रशंसा को तू लक्ष्य समझ बैठा
हार का स्वाद क्या चख पाएगा
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
सही मायने मे कामयाबी हासिल तब ही कर पाएगा ।
किस आजादी की दौड़ में भाग रहा है
कर्तव्य की या कर्मफल की
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
अपने अस्तित्व को तब ही पहचान पाएगा ।
उठा है कैसा ये शोर आजादी का
शरीर रूपी लिबास मे क़ैद है तू
तू सोच आजादी की आज़ाद तो कर
मोक्ष का द्वार तब ही प्राप्त कर पाएगा ।
-रुपाली भारद्वाज