आजादी का जश्न
आजादी का जश्न, नहीं आसान,
सैकड़ों का इसमें, है बलिदान ।
लटके जो चूमके, फांसी का फंदा,
उन्हीं में बसे, भारत माँ के प्राण।।
तान के सीना गोलियां खा गये।
आजाद रह आज़ादी माँग गये।
फ़ौज उनकी आज़ाद हिंद रही,
उन्हीं से ही राष्ट्र की ऊंची शान।।
उन्हीं में बसे, भारत माँ के प्राण–
एक नहीं अनेक न्यौछावर वतन।
प्रस्तर नींव के आजादी थी मन।
उनके बल से आजादी की सांस,
उत्सव उसी बलिदान का है मान।।
उन्हीं में बसे, भारत माँ के प्राण—
कैसे भूल सके, हर उत्सव जिनसे।
आजादी की ये सुबह शाम उनसे।
कृतव्य के कठिन पथ वह चले थे,
चलते हम तभी रख सीना तान।।
उन्हीं में बसे, भारत माँ के प्राण—
जय हिन्द।
(रचनाकार कवि – डॉ शिव लहरी)