आजादी का “अमृत महोत्सव”
पक्षियां खुले आसमान में जो स्वतंत्रता महसूस करती है, हम उन्हें किसी पिंजरे में कैद कर दे, तब उसकी निजी स्वतंत्रता कैसे क्षीण होती है? उनके जीवन शैली पर क्या प्रभाव पड़ता है? इस बात को उन पंंक्षियो से ज्यादा कोई और नहीं समझ सकता। हर किसी को अपनी मातृभूमि और आजादी प्यारी होती है। कभी स्वाधीनता और स्वाभिमान के विषय में फुर्सत से बैठकर सोचें, कि कोई देश आजादी के लिए क्यों संघर्ष करता है? तो इस सवाल का सीधा सा जवाब यही होगा, कि हमारे साथ अपने ही घर में नौकरों जैसा व्यवहार (बर्ताव) किया जाए या फिर नौकर का भी सम्मान न मिले, तो उस समय हमारा मनोवृत्ति क्या होगी? हमें इस सवाल का जवाब जानने के लिए किसी के उत्तर की शायद जरूर न पड़े। स्वतंत्रता और परतंत्रता को जानवर भी भाली-भांति महसूस करते है। हम तो इन्सान हैं, स्वाभिमानी हैं, बुद्धि जीवी है, आत्मसम्मान ही इन्सान की अभिव्यक्ति होती है।
आजादी से पहले जब हमारा देश ब्रिटिश शासन के अधीन था। तब हम भारतीयों के कोई सपने नहीं हुआ करते थे। हमारे जीवन के कोई उद्देश्य नहीं थे। हमारे सुरक्षा के लिए, कोई संविधान नहीं था, न हम ब्रिटिश सरकार से कोई प्रश्न कर सकते थे।
अंग्रेजों ने लगभग दो सौ साल तक हम पर शासन किया। हमारे देश को लूटा, शासकीय प्रताड़ना का शिकार होते रहे, हमारे संप्रभुता और संस्कृति को मिटाने का पूरा प्रयास किया। हमारे अपनों के बीच में ही नफ़रत फैलाएं, हमें आपस में ही लड़ाते रहे। तब जाकर देश में एक नई क्रांति का उदय हुआ, लोगों में आत्म सम्मान, आत्म स्वाभिमान जागृति हुआ। धीरे-धीरे ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह शुरू हो गया। देश के क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के कुशासन को उखाड़ फेंकने के लिए मोर्चा खोल दी। उन्होंने ऐसे समय में अपने प्राणों की आहुति दी, जो उम्र बच्चों का खेलने-खाने, पढ़ने- लिखने का होता है। आजादी के आन्दोलन में कितने नरसंहार हुए? कितने माताएं विधवा हो गई? कितनों के कोख सुने हो गए ? कितने मासूमों की जाने चली गई ? महात्मा गांधी जी का सत्याग्रह, अहिंसा को हथियार बनाकर आजादी प्राप्त करने एक मात्र विकल्प मानकर अंग्रेजों पर अपना प्रभाव स्थापित करना और सरदार भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, गुरु सुखदेव, लाला लाजपत राय आदि क्रांतिकारियों ने जो संघर्ष किया उसके परिणाम स्वरूप हमारा आजाद भारत का सपना पूरा हुआ। 15 अगस्त 1947 ई की मध्य रात्रि को आजादी की अधिकारिक घोषणा की गई। दुर्भाग्य ने हमारा साथ फिर भी नहीं छोड़ा, देश दो भागों में बांट गया एक भारत, दूसरा पाकिस्तान।
आजादी के वे परवाने, जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए क्रांति लाई, उसे साकार करने के लिए अपने जान की कुर्बानी दे दी, एक लम्बी क्रान्ति के बाद आजादी तो दिला दी, लेकिन ये अलग बात है कि वे नए भारत का नई तस्वीर उभरते हुए नहीं देख सके। उन्होंने यह कुर्बानी भारत के 130 करोड़ लोगों के लिए ही तो दी, बदले में उन्हें क्या मिला? अमरत्व ! वे लोग ऐसे क्रांतिकारी थे, जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर करके मां भारतीय को आजाद कराना ही अपना मूल कर्तव्य समझें। जिसके फलस्वरूप हमें आजादी के 75वी वर्ष गांठ को “अमृत महोत्सव” के रूप में मनाने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ। धन्य हैं वो माताएं जिन्होंने ऐसे क्रांतिकारियों को जन्म दिया। भारत हमेशा उनके कृत्य को याद रखेगा और हमेशा उनके प्रति कृतज्ञ रहेगा। आज भारत आजादी के 75वी वर्ष गांठ को “अमृत महोत्सव” के रूप में मना रहा है। आजादी के इस कालखंड को “अमृत वर्ष” के रूप में जाना जायेगा।
15/08/2022 लेखक- राकेश चौरसिया
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