आज़ादी पर ग्रहण
पंख कतरे गए जिन पंछियों के ,
आज़ादी क्या होती है उनसे पूछो ।
गुलामी की जंजीरें तोड़कर जिन्होंने ,
बा मुश्किल राहत की सांस ली थी ,
वापस जंजीरों में जकड़ा जाना कैसा लगता है ,
जरा पूछो ।
शिकारी के कैद में रहता है जिस तरह ,
कैसे रहता है एक बेजुबान घुट घुट के ,
जरा उसके दिल से पूछो ।
एक सैयाद क्या आया गुलशन में,
अपना गुलशन ही बैगाना लगने लगा,
अपनी जान बचाने को कैसे रखा दिल पर ,
पत्थर उनसे पूछो ।
बदनसीबी की ऐसी बिजली गिरी ,
हरे भरे ,खुशियों से भरे आशियां पर ।
बिखरी हुई ईंटों को समेटने वाले जख्मी ,
उन हाथों से पूछो ।
तूफानों से जूझते हुए साहिल पर ,
नाव लाने की जिसकी जिम्मेदारी थी ।
फर्ज को अपने छोड़ भाग खड़ा हुआ,
क्या गुजरती होगी उन सवारियों पर ,
जरा उनसे जाकर पूछो ।
टुकड़े टुकड़े हुए जाता है दिल ,
यह दर्द भरा नजारा देखकर ।
जान बचाने के लिए जान से हाथ धो ,
रहें है ।
उन बेबस और लाचार अफगानी नागरिकों
के आंसुओं से पूछो ।
अचानक गिर पड़ा पहाड़ मुसीबतों का ,
कमबख्त यह गिद्ध कहां से आए ?
अपनी बहु , बेटियों , माताओं की लाज पर
आ गया भारी संकट ,
एक पिता ,बेटा और पति के दिल और दिमाग ,
की कश्मकश का हाल ।
हाय ! कुछ न पूछो ।