आजकल
आजकल
सयाने बहुत हो गए हैं लोग आजकल,
बनाते हैं रिश्ते जो अपना अपना काम देखकर !
शब्द बोलकर यूँ ही निकल जाते हैं लोग आजकल,
जुबान के शब्दों से भी घायल हो जाते हैं रिश्ते अक्सर !
होती है गलती उसी से जो करता कर्म निरन्तर है,
निठल्ला का है ही काम, ढूँढ़ना गलती हर बार !
शोहरत के गुरूर में अंधे हो जाते हैं लोग कई बार,
यहाँ खामियों के अपेक्षा, खूबियों से जलते लोग आजकल !
सहज है जीवन, रुक जाए तो मिलता है दर्द भयंकर,
बीमार यहाँ हर शख्स है, कोई तन से तो कोई मन से आजकल !
मुनीष भाटिया
5376, ऐरो सिटी
मोहाली
9416457695