आजकल भरी महफ़िल में सूना सूना लगता है,
आजकल भरी महफ़िल में सूना सूना लगता है,
वक्त भी जैसे हमसे आजकल रूठा लगता है !
नीरस लगती है ये फ़िज़ा ये बहारें गुलशन की,
तुझ बिन भीगा सावन भी सूखा सूखा लगता है !
मिज़ाज हर एक शख्स का बदला सा लगता है,
ऐ हमदम, तेरे बिना सब रूखा रुखा लगता है !
दिखते है बाहर से सब लोग हँसते मुस्कुराते से,
मगर अंदर से हर कोई जैसे टूटा टूटा लगता है !
डर लगने लगा है अब तो सरेराह भी चलने से
हर नज़र-ऐ-आईना जिस्म का भूखा लगता है !!