आचरण
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!! श
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आचरण
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आग लगाने में माहिर हो, तनिक नहीं तुम सकुचाते ,
द्वेष भाव के शूलों को तुम, नित्य पथों में बिखराते ,
तेरा-मेरा करते-करते, कितनी पीढ़ी बीत गयीं ,
शहदीला घट त्याग गगरिया, क्यों तुम विष की छलकाते ?
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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🪷🪷🪷