आग यदि आए तो दरिया में पिघल कर आए
. . . . . . . . . ? गजल ?. . . . . . . .
मशअला जो भी हो हल उसका निकलकर आए
आग यदि आए तो दरिया में पिघलकर आए
हाँथ लोगों के हैं पत्थर नहीं हैं फूल कोई
उससे कह दो अगर वो आये संभलकर आए
बड़ी मुद्दत के बाद सो रहा हूँ चैन-ओ-अमन से
मेरे सपनों को आज फिर न मशलकर आए
आज फिर से लुटी है निर्भया अपनो के बीच मे
जुबां फिर न किसी नेता की फिसलकर आए
शाम बोझिल हो लिपटती है सुर्ख रातों से
जैसे बच्चा कोई माँ से ही लिपटकर आए
बाग गुलशन के थे मानिंद किसी दर्पण के
चाँदनी रात भी आये तो चमककर आए
दर्द इतना कभी न बांटों ऐ – मेरे मालिक
कोई “योगी” न आज फिर से तड़पकर आए
—
? ? ? ? ? ? योगेन्द्र योगी
. . . . . . . . . . . . . .कानपुर (7607551907)