आग पतंगा
आग पतंगें की तुम ही जानो
मै तो बस जलना बुझना जानूं
प्रीत पले है दिल में मेरे
प्रीतम छलिया है ये मैं क्या जानूं.?
2.
इस दहर में कोई किसी का उस्ताद नहीं
शागिर्द बने कोई मेरा मुझ में वो बात नहीं
चल आ संग संग चलते हैं
कुछ मै लिखूं, कुछ तू लिखे,
कुछ औरों के किस्से पे हंसते है
जिंदगी है छोटी सी
इतने में क्या औरों से जलते हैं
चल हम किस्सा गोई करते हैं…
~ सिद्धार्थ