आगे बढ़ो, आगे बढ़ो ….
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो
ओ दोस्तों, ओ साथियों,
ओ मेरे देशवासियों,
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो।
कदमों को तुम थमने न दो,
अपने आपको थकने न दो,
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो …..
दधीचि का यहाँ तपो त्याग,
बुद्ध का यौवन में बैराग्य,
गौरवमय अपना इतिहास।
अतीत को सम्मान दो,
वर्तमान को पहचान दो,
कल हो अगर चुनौती भरा,
तो तुम उसे समाधान दो।
ऊँच्चे शैल हो, दुर्गम गैल हो,
मार्ग पुराना या नूतन हो,
रूकना नहीं, झुकना नहीं,
चलते चलो, चलते चलो।
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो …..
हर गाँव, शहर या प्रांत में,
बहे मोहब्बत की हवा,
हिंसा यहाँ बहुत हो चुकी,
अब न कोई घर जले,
न अब कोई अस्मत लूटे,
न किसी की किस्मत फूटे।
धुन हो तो बस काम की,
चाहत न हो ईनाम की,
चाह हो तो बस सुनाम की,
भीड़ में अलग पहचान की।
जन जन में अनुराग हो,
चेहरे पर बस हो हँसी,
चाहे कितना भी तनाव हो,
मुख पर बस मुस्कान हो।
हँसता हुआ ये हिन्दुस्तान हो।
दिये जला कर प्रीत के,
तुम उन्हें बुझने न दो।
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो …..
पुष्प प्रमुदित तुम किसलय के,
भारत के चंदन उपवन के,
नवल उमंगे, और नई आशायें,
आवाज़ देती व्नई दिशायें।
इस देश के धरा, गगन में,
सूर्य, रश्मि और चन्द्र किरण में,
बहा दो तुम प्रेम रस धारा।
किश्ति को मिल जाये किनारा।
विपुल शक्ति के तुम हो सागर,
तन मन में ऊर्जा का गागर।
माना, अभी दूर नगर है,
काँटों भरा कठिन डगर है,
पर डरो नहीं, चले चलो,
चलते चलो, चलते चलो।
आगे बढ़ो, आगे बढ़ो …..
: सतीश वर्मा
मुम्बई / 08.10.2018