आगे बढ़ने का तो मुझे बहुत चाव है _ गजल/गीतिका
आगे बढ़ने का तो मुझे बहुत चाव है।
मेरे ऊपर गरीबी ने पसारे पांव है।
कैसे टिक पाऊंगा मैं व्यापारिक बाजार में,
उठ नहीं पा रहे हैं मेरे पांव है।।
गनीमत है कि रहने को झोपड़ी है।
घास फूस की ही सही पर थोड़ी छांव है।।
मरहम लगा लेता हूं उसी में बैठ कर।
मेरी काया में लगे जो गहरे घाव है।।
मेरे परिवार को बहुत आशा है मुझसे।
बेटे बेटियों को भी पढ़ने का लगाव है।
निराश हताश होकर रह जाते वे भी।
मर जाते उनके तो मन के भाव है।।
चाहता हूं कुछ समर्पण करूं देश के लिए।
मिले कोई काम, सेवा त्याग के मेरे भाव है।।
राजेश व्यास अनुनय