आगे निकल जाना
गीतिका
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ज़माने से कहीं आगे निकल जाना।
कभी मत हाथ मलना और पछताना।
किया करते बहुत बातें बिना मतलब।
कभी इनके न भूले से निकट आना।
चढ़ा सूरज सभी करते नमन देखो।
गया जो डूब उसको कुछ नहीं माना।
लगाकर टकटकी जो देखते रहते।
कभी उनकी तरफ भी देख मुस्काना।
हमेशा चार दिन की चांदनी होती।
नियति है बाद उसके रात का छाना।
कठिन दिन बीत जाएंगे स्वयं चुपके।
कभी बनता रहेगा खूब अफसाना।
मुहब्बत में अधर चुपचाप मुस्काते।
मगर खामोश रह पाए न दीवाना।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०४/०६/२०२४