आगाह
वहशी दरिन्दों पर हमदर्दी जताना
छोड़ दो ,
सियासत को दहश़़तग़र्दी से मिलाना
छोड़ दो ,
जो अपनो के ना हुए वो तुम्हारे
किस- क़दर बनेंगे ,
ये ख़ुदगर्ज़ वक्त आने पर तुम्हें भी
मिटा कर रहेंगे ,
नापाक़ इरादों की इंतिहा,
बर्बादी की ओर ले जाती है ,
ज़िंदगी शर्मसार होती है,
इंसानियत सिसकती रह जाती है,
वक्त रहते सियासी ख़ुदगर्ज़ी की
तीरगी से बाहर आओ,
इंसानियत को पहचानो ,
अपने फर्ज़ और ज़र्फ़ को जानो,
वरना अपने ही बुने जाल में
उलझकर रह जाओगे ,
लाख कोशिश करने पर भी
उबर ना पाओगे।