आगाह
ज़माने का रुख़ इस क़दर फ़रेबी है ,
यहाँ सीरत पर सूरत की फ़ितरत भारी है ,
बच उन राहों से जो अज़ाब की ओर ले जाते हैं ,
जो तुझे ज़मीर-ओ -ईमान से भटका हुआ
ज़ेहनी ग़ुलाम बनाते है ,
ग़र भूलकर भी तू बढ़ चला उन राहों पर ,
कर भरोसा इस ज़माने की बातों पर ,
तय है तू अपनी करनी पर पछताएगा ,
जब तू हर सिम्त अंधेरा ही अंधेरा पाएगा ,
तब तेरा उन अंधी राहों की गिरफ़्त से
लौटना नामुमकिन हो जाएगा।