आखिर हम चाहते क्या है?
जिंदगी वीत रही है सिर्फ चाहतो में,
और हमे पता तक नही है कि
आखिर हम चाहते क्या है।
चाहतो का अंबार लगा है इर्द गिर्द,
एक चाहत के बाद दूसरी की कतार है
फिर वही बात आखिर हम चाहते क्या है।
दुनिया चाहतो का मेला बना,
विता आये जिंदगी सारी मेले में फिर भी न खरीद पाये वो
ऐसा हम आखिर हम चाहते क्या है।
जिंदगी भय में जिये अलविदा की अब वेला है
न जाना न जान पाए कि वो बात,
कि आखिर हम चाहते क्या है।