आखिर वो तो जीते हैं जीवन, फिर क्यों नहीं खुश हम जीवन से
वो भी तो जीते हैं जीवन, फिर क्यों नहीं खुश हम जीवन से।
क्यों कोसते हैं हम ईश्वर को, क्यों है शिकायत हमें जीवन से।।
वो भी तो जीते हैं जीवन———————।।
जिनके नहीं है दोनों आँखें, लेकिन राह वो नहीं भूले।
क्यों थक गए हम अपनी राह में, क्यों है नाराज हम जीवन से।।
वो भी तो जीते हैं जीवन——————।।
जिनके नहीं है दोनों हाथ, फिर भी बनाते हैं अपना नसीब।
क्यों बदनसीब हम कहते हैं खुद को, क्यों है निराश हम जीवन से।।
वो भी तो जीते हैं जीवन———————–।।
दे गए जुबां वो हमको, जिनके नहीं थी सच में जुबान।
क्यों नहीं लिखते हम भी इतिहास, क्यों है उदास हम जीवन से।।
वो भी तो जीते हैं जीवन———————।।
जिनके कुरुप चेहरे देखके लोग, खिल्ली उड़ाते थे यारों बहुत।
करके संघर्ष वो पहुंच गए मंजिल, क्यों है हताश हम जीवन से।।
वो भी तो जीते हैं जीवन———————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार
गुरुदीन वर्मा उर्फ़ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)