****आखिर बहू भी तो बेटी ही है***
हमेशा से देखा गया है कि बहू और बेटी दोनों में भेदभाव यह सृष्टि का नियम सा हो गया है सास कभी भी अपनी बहू को बेटी नहीं मानती और ना मानना चाहती | वह क्यों नहीं समझती कि उनकी बेटी भी किसी घर की बहू है |घर में बहुत खुशी का माहौल छा गया जब सास को पता चला कि उसकी बहू के पांव भारी है घर में बहू से एक बेटी तो पहले ही थी अब सास को बहू से बेटे की चाह थी | सास ने पहले पहल तो बहू का बड़ा लाड-चाव किया परंतु तीन महीने बीतते ही जब बहू को परेशानी हुई जिसके कारण सांस को सब की रोटियाँ पकानी पड़ी क्योंकि बहू को रोटी पकाने से बदबू आती थी | सास मन मारके रोटियाँ बनाती और पूरी रसोईघर को बिखेर कर आ जाती और फिर बहु से रसोई साफ करने को कहती | बहू बेचारी रसोई साफ करके कुछ खा भी नहीं पाती थी | एक-दो दिन तो ठीक चला पर रोटी न बनाने से बचने के लिए सास ने बहू पर ही इल्जाम लगा दिया कि का से बचने के लिए बहू बहाना बनाती है | सास ने बेटे से कहा मेरे बस की नहीं है तुम्हारी रोटियाँ बनानी मैं तो अपनी दो रोटी बनाऊँगी और खाऊँगी और जिसे भूख लगे वो अपनी रोटी बनाए और खाए |थोड़े दिन बाद पता चलता है कि उसकी बेटी भी पेट से है बेटी माँ के पास आती है और कहती है मम्मी मुझसे रोटी नहीं बनाई जाती मुझे रोटी में से बदबू आती बेटी की बात सुनकर माँ बोलती है बेटी अगर बदबू आती है तो रोटी मत बनाया कर अपनी सास से कह दिया कर वह बना देगी |बेटी तू ज्यादा से ज्यादा आराम किया कर और अगर ज्यादा जबरदस्ती करें तो कह देना मुझसे नहीं होगा ये सब |हम हैं तेरे साथ कुछ ज्यादा परेशानी हो तो यहाँ आ जाना | तुझे मैंने लाडो से झूले झुलाए हैं मुझमें अभी इतना दम है कि तुझे रोटी बनाकर खिला सकूँ और तू चिंता मत कर घर में तेरी भाभी भी तो है |
एक माँ अगर अपनी बेटी के लिए अच्छा सोच सकती है तो उस बेटी के लिए क्यों नहीं सोचती जो अपना घर, माँ-बाप और पूरा परिवार छोड़कर आई है| एक माँ कैसे इतनी निर्दयी हो सकती है बहू के लिए कुछ और बेटी के लिए कुछ और | मेरा मनना है कि अगर हर परीवार अपनी बहू को बेटी बनाकर रखे तो किसी माँ की बेटी को सताया या जलाया ना जाए |