इंसानियत को शर्मसार मत करो
लहू बहा रहे हो एक दूजे का इससे ,
ना अल्लाह खुश होगा न भगवान खुश होगा ।
इंसानियत को कर रहे हो शर्मिंदा ,
ज़रा अपना गिरेबान देखो क्या जमीर खुश होगा ?
लहू बहा रहे हो एक दूजे का इससे ,
ना अल्लाह खुश होगा न भगवान खुश होगा ।
इंसानियत को कर रहे हो शर्मिंदा ,
ज़रा अपना गिरेबान देखो क्या जमीर खुश होगा ?