‘आखिर क्यों?’
कौन सुआत्मा कौन दुरात्मा? कौन किसका किसलिए कर रहा संघार?
कौन मनुज दनुज कौन? कौन किसको पहचान रहा? ये कैसा युद्ध, क्या धर्म युद्ध? या मात्र अहंकार युक्त? आखिर क्यों मनुष्य संतुष्ट नहीं होता? सब कुछ तो दिया है , उस सर्वशक्तिमान ने । और कुछ नहीं तो बुद्धि बाहुबल से पेट तो भर सकता है। धरा का बिछौना, नभ छत्र , औषध, भोज्य वनस्पति, मृदु जल, शुद्ध समीर सभी कुछ तो है जीवन की आवश्यकता पूर्ति हेतु। क्यों वसुधा का हृदय विस्फोटक से छलनी किया जाता है? हे कुटिल निर्मम मानव विचार कर। स्वयं भी चिंता मुक्त होकर जी और पर को भी जीने दे!
ये लोलुपता क्यों ? आखिर क्यों?