आखिर क्या… दुनिया को
आखिर क्या हो गया है इस दुनिया (इंसानों) को
कभी हिन्दू तो कभी मुस्लिम,बस यहीं रह गया हैं अब लड़ने को
कहीं धर्म मर रहा हैं तो कहीं जातियों के नाम पे मर रहा हैं इंसान
आखिर कब बचाएंगे हम अपना हिन्दुस्तान
क्या आपस में कट-मर जाएंगे तो समस्या सुलझ जाएंगी
आखिर कब जागेंगे,कब समझेंगे, क्या अब भी हम यूं ही सोएं रहेंगे
याद क्यों उन वीरों को कितने धर्मों के होंगे
आखिर कब हम इंसान के इंसानियत को समझेंगे
जब-जब आए थे संकट , इंसानों ने किया था धैर्य धारण
इंसानों का वह धैर्य कहां गया,आज ढूंढ रहा है हिन्दुस्तान
जब से बहा है कोरोना रूपी नदियां,
विश्व में मचा हैं हाहाकार
S.D का पालन करके खुद के साथ बचा लों अपना हिन्दुस्तान,यह है हम सबका भी अधिकार।
पूछ रहा है वो खून के बुंदे जिसने आज़ादी दिलवाएं थे
खाके सीने पर गोलीं हिन्दुस्तान बचाये थे
आओं खा ले ये कसम हम भी हिन्दुस्तान बचाएंगे,
जब तक जिस्म में रहेगा ख़ून के एक भी कतरा
देश के खातिर जीएंगे और देश के खातिर हंसते-हंसते मर-मीट जाएंगे।।
नीतू साह
हुसेना बंगरा,सीवान-बिहार