आखिर कब तक
सैनिक होते रहें शहीद
ये नेताओं की नीति है
सियासत की कुर्सी से
इनकी सच्ची प्रीती है
मासूमों का खून देखकर भी
यह नहीं जग पाते हैं
नरसंहार जब भी होता है
यह राजनीति रचाते हैं
इनके बलिदानों के बदले
इनकी मौत की कीमत लगती है
पाँच लाख बस जान की कीमत
इनकी तो मौत भी सस्ती है
एक पदक लाकर खिलाड़ी
करोड़ों रुपये ले जाता है
चैन से सोता घर में नेता
फिर भी लाखों रुपये कमाता है
भारत माता के लालों को
कब तक शहीद कराओगे
इन कुर्सियों की खातिर
कितने घर बरबाद कराओगे।
-रागिनी गर्ग