आखिर इतना गुस्सा क्यों ? (ग़ज़ल )
आज के इंसान में है आखिर इतना गुस्सा क्यों ?,
जो बन बैठा है अपनी ही ज़ात का दुश्मन यह क्यों ?
इंसान जैसा दिखता तो है मगर इंसान तो नहीं न ,
खुदगर्जी की हदें पार कर भुला बैठा है इंसानियत क्यों ?
रहमदिली ,फराखदिली ,मुहोबत ,कुर्बानी और नेकी,
कल तो थे ईमान इसके ,आज वोह बे ईमान क्यों ?
ज़रा-ज़रा सी कहा सुनी पर निकाल लेता है खंजर ,
नफरत की इतनी आग लिए दिल में घूमता है क्यों ?
गुस्से में आग-बबूला हो आँखों से भी अँधा हो जाता है,
नहीं रख पाता लोगों में उम्र का लिहाज़ भी जाने क्यों ?
यह गुस्सा नहीं है सिर्फ, है यह बेइंतेहा गुरुर इंसान का,
समझता है अपने आगे दुसरे इंसान को सिर्फ खिलौना क्यों ?
होश में कभी वोह आये गर तो उसे मालूम हो ,या शायद !!
उसके भीतर ज़मीर नाम की चीज़ थी ,मगर अब नहीं क्यों ?
कभी तो आएगी कयामत ,और खुदा लेगा इसका हिसाब ,
गुस्से में बेकाबू होकर किये कितने गुनाह ,कितने ज़ुल्म क्यों ?
शर्मिन्दा न होना पड़े ,खुदा के सामने ,इसीलिए तौबा कर ,
चल मुहोबत की राह पर ,चलता है तू नफरत की राह पर क्यों ?