आखिरी शब्द
माँ मेरा जुर्म क्या है ?
कि मै एक लड़की हूँ l
माँ मेरा कसूर क्या है?
क्यों मै इस धरती पे आयी हूँ?
समझ नहीं आता ,
क्यों इतनी हैवानियत छायी हैl
मानव के भेष में बसे राक्षस की क्रूरता,
तो रावण पर भी भारी है ll
घर से निकली थी दूर ,
सोचा कुछ करके दिखाउंगी l
बेटी हूँ पर बोझ नहीं ,
ये समाज को बतलाऊँगी ll
चलते चलते कुछ कदम ही हुए,
लड़खड़ाई मै और बिखर गयी उम्मीदों की माला माँl
एक हवा का झोका तूफ़ान बन कर आया,
पल भर में तेरी गोदी से कर दी दूर मुझे माँ ll
अब तुम सबसे बहुत दूर हूँ मैं माँ,
चाह कर भी तेरी गोदी अब पा नहीं सकती माँ l
बहुत आएंगे मेरी कफ़न पर रोने वाले माँ,
उस दिलासे में तू भी मत बह जाना माँ ll
क्युकी ये ना सोचेंगे न समझेंगे ,
ना तेरा दर्द जानेंगे l
बस चंद कागजों के पन्नो पे ,
तेरी बेटी के कफ़न की नुमाईश निकालेंगे ll