आखिरी पन्ना
आखिरी पन्ना
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जीवन की किताब हम पढ़ते ही रहते हैं
उसके पन्ने पलटते ही रहते हैं
अच्छे बुरे का विचार किये बिना
कुछ पन्ने पढ़ते, कुछ बिना पढ़े ही छोड़
अगले पन्ने पर आ जाते हैं
उस पन्ने को भी अपनी सुविधा से ही
पढ़े या बिना पढ़े ही खुश हो जाते हैं।
जीवन के पन्नों से हम कभी खुश
कभी नाखुश ही होते हैं
हर पन्ने की एक एक इबारत
हम अपनी सुविधा से पढ़ रहे होते,
पर विडंबना यह भी है कि हम
जीवन के पन्नों को तो
अनवरत पलटते रहना चाहते हैं
पर आखिरी पन्ने तक पहुंचना ही नहीं चाहते,
फिर भी आखिरी पन्ने तक पहुंच ही जाते
और मायूस होकर बिना पढ़े ही
अपने जीवन की किताब खुली छोड़
न चाहते हुए भी दुनिया से विदा हो जाते हैं।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित