आखिरी निशान
कुछ निशानी मिली थी मुझसे, जो तुझसे छूकर लौटी थी
वो ख़बर सुनाने को तेरी, मेरे पास अभी तक बैठी थी
है हाल बुरा उसका माना, ना तुम बिन इक पल हंसती है
वो रोती है लगकर तकिये से, बस याद तुम्हें ही करती है
ज़ाना जीवन लौटा दो या जीने का हक दे दो
या तो याद भुला दो अपनी या साथ उसे बेशक दे दो
मैं अब तक सुन रहा था दिल से, वो चुप चुप सब कुछ कहती है
वो ख़बर सुनाने को तेरी, मेरे पास अभी तक बैठी है
शायद शख्स वही है जो,पल पल हंसती रहती थी
वो बाग़ बगीचे के फूलों से, नजर मिलाके कहती थी
बहुत ही सुन्दर रंग हैं तेरे, ‘शायर’से मुलाक़ात करो
पहले कुछ लिखवालो उनसे, फिर मुझसे दो बात करो
वो फूलों सी पंखुडियां कैसे, दर्द ना जाने सहती है
वो ख़बर सुनाने को तेरी, मेरे पास अभी तक बैठी है
… भंडारी लोकेश ✍️