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14 Jul 2021 · 6 min read

आखिरी दाँव

मित्रो, ट्रांसफर पोस्टिंग के खेल को उजागर करती आंख खोलने वाली कहानी प्रस्तुत है “आखिरी दाँव “।अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें।
कहानी -आखिरी दाँव

वे चिकित्सक दंपति कार पार्किंग में कार पार्क कर रहे थे। उसी समय पति के कानों में एक आवाज गूंजी, नमस्कार सर !

दम्पति ने सिर उठाकर देखा, एक तेजतर्रार चालाक सा दिखने वाला व्यक्ति सामने खड़ा था। अचानक, रहस्यमय प्रकृति के व्यक्ति के इस प्रकार प्रकट होने से दंपति हैरान थे। उन्होंने पहले कभी इस व्यक्ति को नहीं देखा था। उस अजनबी ने प्रश्न किया सर !आप डॉक्टर हैं ।

डॉक्टर साहब ने हां में सिर हिलाया।

उस व्यक्ति ने उनके करीब जाकर कान में कहा , सर मैं सचिवालय में बाबू हूं ।वर्षों पहले आपसे मुलाकात होती थी ,जब आप स्थानांतरण के सिलसिले में पंचम तल पर आते थे।
डॉक्टर साहब ने अपनी स्मृति पर जोर दिया ,कुछ धुंधली सी तस्वीर पंचम तल की उभर कर आयी। सोचा अब यह किस काम का। वैसे भी बाबुओं के चक्कर में पड़कर वे अपना सुख-चैन गवां चुके थे ।अब इस चक्कर में नहीं पड़ना है। अतः डॉक्टर साहब ने टालने की मुद्रा में कहा,

अच्छा, हम तो खरीदारी करने आये थे, चेहरे से टपकते भोलेपन, बोली की मिठास, धूर्त बाबू के मुंह में पानी लाने के लिए काफी थी।

बाबू ने उन्हें पत्नी से कुछ दूर ले जाकर एकांत में कान में कुछ कहा , डॉक्टर साहब इस भ्रम जाल रूपी मायाजाल से उकता चुके थे। अतः उन्होंने उस पर अपना ध्यान फोकस नहीं किया, और पत्नी के पास लौट कर आ गये। अनुभवी पत्नी बाबू की रहस्य मय हरकत को ध्यान से देख रही थी।

उसने कहा ,ये व्यक्ति क्या कह रहा था। क्या आप इसे जानते हैं?

डॉक्टर साहब ने ,अनमने भाव से कहा, पुराना बाबू है ।आजकल सचिवालय में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत है। शायद किसी महत्वपूर्ण विभाग में है। अपना नाम ना बता कर केवल बड़ा बाबू बताता है ।मैंने उसे जाने दिया, कहता है मेरी प्रमोशन व ट्रांसफर की लिस्ट उसकी विभाग से ही पास होगी ।।
पत्नी पहले तो चकरायी, फिर उत्सुकता वश उसने कहा ,तो,उसे जाने क्यों दिया। इतना महत्वपूर्ण आदमी है ।उस से मिलो और अपने प्रमोशन की लिस्ट देख लो। शायद नाम हो। किंतु कहे देती हूं,पैसे, वैसे के चक्कर में मत पड़ जाना, हम यह खेल बहुत देख चुके हैं। यदि पुराना परिचित है तो तुम्हारी सहायता अवश्य करेगा।

बाबू, अब तक जाल फेंक चुका था उसे तो इंतजार केवल चिड़िया के फँसने का था। वह वहीं दुकानों के आसपास व्यस्तता दिखाते हुए चहलकदमी कर रहा था।और वह ऐसा कुछ दिखाने की कोशिश में लगा था, जैसे वह बहुत व्यस्त है, उसके पास समय की अत्यधिक कमी है।

पत्नी के विचार सुनकर डॉक्टर साहब का हौसला बढ़ा ,वह उक्त बाबू को खोजते हुए उसके पास पहुंचे। बाबू तो इसी मौके की तलाश में था , लपक कर उनके पास आया।

डॉक्टर साहब ने उस धूर्त बाबू से पूछा ,क्या तुम प्रमोशन की लिस्ट में मेरा नाम देख सकते हो ?
बाबू ने “आखिरी दांव” फेंकते हुये कहा ,सर, मैं बहुत महत्वपूर्ण विभाग में हूं, उसकी जानकारी लीक नहीं कर सकता, किंतु आप पुराने डॉक्टर हैं तो मैं आपकी कुछ मदद कर सकता हूं ।आपको मैं लिस्ट तो दिखा नहीं सकता, किंतु देख कर बता सकता हूं ।आप इस सूचना को अत्यंत गोपनीय रखेगें, अन्यथा मेरी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।
फिर भविष्य में आपकी कोई सहायता नहीं करेगा।

डॉक्टर साहब ने ईश्वर को हाजिर नाजिर मानकर शपथ ली कि, इस बात को कहीं नहीं बताएंगे। अपनी पत्नी को भी नहीं ।

अब ,उनको विश्वास में लेते ही बाबू ने कहा, मैं गेट नंबर पांच पर मिलूंगा ।आप वही पहुंचें।

डॉक्टर साहब ने पत्नी से लगभग क्षमा मांगते हुए कहा, उन्हें गेट नंबर पांच पर बुलाया गया है।

पत्नी को अब तक सब कुछ समझ में आ चुका था ।उहने कहा सुनो !यह बाबू बहुत चालाक लगता है ।आप मुझसे कुछ मत छुपाना ।यह बाबू लूटने के चक्कर में दिखाई पड़ रहा है ।

डाक्टर साहब ने सब बात अपनी प्यारी पत्नी के समक्ष रख, उसे निर्णय लेने के लिए कहा।

पत्नी ने घबराते हुए कहा, चलो जी हम घर चलते हैं। हमें इस पचड़े में नहीं पड़ना है।
डॉक्टर साहब अड़ गये।
अरे इतना सुंदर मौका कैसे जाने दें। आखिर बाबू को परखना जरूरी है। प्रशासनिक पोस्ट पाने पर बाबू हावी भी हो सकते हैं।

आखिर पत्नी ने समझौता करके, बहुत समझा-बुझाकर पंचम गेट पर भेजा।
बाबू पहले वहां पहुंच चुका था। उसने तुरंत गेट पास बनवाने हेतु धनराशि की मांग की। साहब ने रकम अदा कर दी ।फिर दोनों पंचम गेट से अंदर पहुंचे। घुमावदार रास्ते से होकर वे विभागीय कक्ष में पहुंचे। यहाँ बाबू ने ,गोपनीयता का वास्ता देकर, अंतिम बार चेतावनी देकर कहा, यहां हर कदम पर सीसीटीवी कैमरा लगा है। चारों तरफ सिक्योरिटी है। अतः भूल कर भी किसी को फोन मत करना, यहां फोन लाना मना है। और यह कहकर,वह तेज कदमों से कई कक्षों के मध्य विलुप्त हो गया।

डॉक्टर साहब ने, नजरें उठाकर देखा तो कहीं सीसीटीवी कैमरा नजर नहीं आ रहा था। हाँ एक बाबू कक्ष से बाहर निकलकर डॉक्टर साहब की चौकसी करता नजर आया। वह मोबाइल पर लगातार बात कर रहा था। और मुस्कुरा रहा था ,कि आज बड़ी मछली जाल में फंस गयी है ।

डाक्टर साहब ने तुरंत पत्नी को फोन मिलाया, बाबू तो नौटंकी का किरदार नजर आ रहा है ।

थोड़ी देर में बाबू तेज कदमों से नाक की सीध में चलता हुआ आया। अपना मुंह लटका कर कहा, आपका नाम ट्रांसफर लिस्ट में है, और आपका बहुत गलत जगह स्थानांतरण कर दिया गया है। उसे तुरंत रूकवायें, अन्यथा आप बहुत बुरे फंस जाएंगे।

डॉक्टर साहब उसके किरदार से अच्छी तरह वाकिफ हो चुके थे। उनका नाम ट्रांसफर लिस्ट में नहीं है ,यह पैसा वसूलने की एक पुरानी चाल है।
डाक्टर साहब ने कहा, कहां हो रहा है।

उसने तपाक से कहा, यह मैं नहीं बता सकता ,यह गोपनीय है।

डॉक्टर साहब ने कहा, अच्छा मेरा ट्रांसफर हो जाने दो। मेरा ट्रांसफर होना इतना आसान नहीं है ।उसके पहले कुछ प्राथमिकताएं भी निभाई जाती है। ऐसा तो कुछ नहीं है।
बाबू के हाथ से पाँसा फिसल चुका था ,उसकी सच्चाई सामने आ गयी थी।

उसने फिर कहा, मैंने इतना प्रयास किया ,उस बाबू को मैं क्या जवाब दूंगा। क्या ट्रांसफर हो जाने दूं ?

डॉक्टर साहब ने मुस्कुराते हुए कहा ,हां ।
अब बाबू के “हाथ से तोते “उड़ चुके थे।
बाबू पर डॉक्टर साहब को दया आ गयी,
उन्होंने कहा तुम मेरी प्रमोशन की लिस्ट में नाम तो बता सकते हो। बाबू की जैसे जान में जान आयी। अभी उम्मीद जीवित है, ऐसा सोचकर वह तेज कदमताल करता हुआ ,एक कक्ष में प्रवेश करता है। अब तक डॉक्टर साहब जान चुके थे कि उनके ऊपर एक व्यक्ति बराबर नजर रख रहा था। तभी बाबू अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में ?अभिनय करता हुआ आया। डॉक्टर साहब उसके पीछे हो लिये। वह एकदम पीछे मुड़ा, गर्मजोशी से हाथ मिला कर बोला, डन!
डॉक्टर साहब ने कहा ,क्या मतलब ।
बाबू ने कहा, सर आपका नाम लिस्ट में है।
डॉक्टर साहब पूर्व में ही परिणाम का अनुमान लगा चुके थे। कुछ पाने की उम्मीद में बाबू यही कहेगा ।

अब बाबू ने विनीत मुद्रा में कुछ पाने की आस में हाथ फैलाना शुरू किया।

डॉक्टर साहब ने जेब से एक नोट निकालकर उसके हाथ में रख दिया। मांग अत्यंत अधिक थी।

बाबू ने कहा, यह क्या इससे क्या होगा ?आपका ट्रांसफर भी रुकवाना है, प्रमोशन करवाना है। डॉक्टर साहब एटीएम से पैसे निकाल कर दीजिये।

डॉक्टर साहब ने कहा, बाबूजी मैं सरस्वती का पुत्र हूं। मेरे पास लक्ष्मी का वास कहां? अब जो भी मेरे पास था ,मैंने सब दे दिया ।
मैं एटीएम पास में नहीं रखता हूं। अतः आज इतना ही।

बाबू ने नाराज होकर धनराशि लौटा दी,
डॉक्टर साहब बाहर की तरफ चल पड़े ,बाबू साथ में था, जब उसने देखा कि डॉक्टर साहब पसीज नहीं रहे हैं ,तो “भागते भूत की लंगोटी भली “समझकर उसने वह धनराशि हाथ से ले ली। सिक्योरिटी जस की तस खड़ी थी। जैसे कुछ हुआ ही ना हो, या, यह रोजमर्रा की बात हो।

डा.प्रवीण कुमार श्रीवास्तव,” प्रेम”

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