आखिरी गीत प्रेम का
मेरा
प्रथम और
आखिरी गीत प्रेम का
तुम ही हो मेरे
प्रभु
और इस संसार का
हर प्राणी और इंसान भी
जिसमें तुम बसते हो
तुम कण कण में
विराजमान हो
मेरे मन में तो
मेरे इस धरती पर जन्म
लेने के
पहले क्षण से ही
सजते हो
तुम से मेरा यह
बंधन अटूट है
तुमने मुझे
इस पृथ्वी पर
भेजा है
जब तुम चाहोगे
तब तुम्हारे पास ही
लौटकर मुझे आना है
तुम ही मेरी प्रीत हो
तुम ही मेरे मीत हो
तुम ही मेरे होठों से
हरदम गुनगुनाते एक
मधुर गीत हो
मैं तो तुम्हारी ही
सृष्टि
तुम्हारी ही भक्ति
तुम्हारी ही दृष्टि
तुमसे ही
मेरे जीवन की गति
जीने की वजह
सांसो की लय
तुमने ही प्रदान किया
मुझे जीवन का यह
अनमोल उपहार
तुमने ही भेजा
मुझे संसार में
किसी उद्देश्य से
करने को इसका उद्धार
तुम्हारे नाम की बांसुरी
मैं अपने मन के होठों से
बजाती रहूं
तुम्हें स्मरण करती रहूं
तुम्हारे हृदय के मन्दिर में
अपने प्रेम के दीपक जलाती
रहूं
तुम सबके दुख दूर करना
सबके अंधेरे मन के कोनों में
उजाला भरना
सबकी झोली खुशियों से
भरना
मेरे मन में तो
तुम्हारा वास है
मैं तुम्हारा अंश हूं
मैं कभी खुद के लिए
न कुछ मांगू प्रभु
तुम्हारे रूप के दर्शन होते रहे
आखिरी सांस तक
हर क्षण
यही उपकार बनाये रखना
प्रभु
तुम्हारे दर्शन से ही
यह दिन उगे
यह सांझ ढले
यह रात बीते
यह जीवन कटे
तुम ही मेरे जीवन का
आधार
तुम ही मेरे प्रथम और
आखिरी दर्पण में सजते श्रृंगार प्रेम के।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001