आखिरी ख्वाहिश
आखिरी ख्वाहिश थी बस एक मुलाकात की।
अश्क आंख में लिए, बस चंद सवालात की।
साथ निभाना नहीं था तो,साथ चले ही क्यों
कोई कहानी तो बतला जाते बदले हालात की।
कहां जायें हम आखिर, कहां है मंजिल अपनी
सोचने के लिए मोहलत दो बस इक रात की।
सजा रखे हैं कितने ही आंसू, मैंने पलकों पर
वजह तो आकर तुम पूछ लेते, बरसात की।
मेरे थरथराते लबों को क्या शिकायत है तुझसे
मिलने आओ तो बात होती चंद ख्यालात की।
सुरिंदर कौर