आख़िर उन्हीं २० रुपयें की दवाई ….
बात सन् १९९६ की हैं,मैं एक बहुत बड़ी कम्पनी में कार्यरत था.मेरा बेटा अभी २ साल का था, इस कम्पनी में मैंने सात साल काम किया,जहां मैं रहता था मेरे कई मित्र भी थे जो मेरे साथ उसी कम्पनी में अलग-अलग विभाग में काम करते थे.इस कम्पनी में मैंने सात साल में बहुत कुछ सीखा,जापानियों के साथ काम किया,ये लोग बड़े ही मेहनती और कुछ ना कुछ सीखते रहना इन लोगों में हमेशा देखने को मिला,औरमुझे भी हमेशा उन लोगों से सीखने को मिलता रहा,काम के प्रति समर्पण कबीले तारीफ़ था.एक दिन मेरे चारों दोस्त मेरे पास आकर बोले,तू बड़ा ही हरीश चंद बनता हैं, तेरी वजह से हम सबके २०-२० रुपये कट रहे हैं.मैं समझ गया. हम लोगों को काम की वजह से रुकना पड़ता था,एक घंटे रुकने के मैं १०० रुपये लिया करता था.इसके लिए १०० रुपये की स्लिप बनानी पड़ती थी लेकिन वो सभी मित्र १२० लेते थे,अब चुकी हम सब आस पास रहते थे तो अकाउंट विभाग ने उन चारों दोस्तों को १२० रुपये देने से मना कर दिया इस वजह से वो सब मेरे से नाराज़ थे.बात आई गई हो गई एक दिन वो चारों दोस्त फिर आये मेरे पास और मेरी १२० की स्लिप साइन करवा कर शाम को मुझे १२० देकर चले गये और कहा आगे से १२० की ही स्लिप बनाना.लेकिन मैं मन ही मन सोच रहा था आप लोग सही नहीं कर रहे हो,जैसे ही मैं घर पहुँचा मेरी पत्नी घर के दरवाज़े पर ही खड़ी थी मेरे से मेरा लंच बॉक्स लेकर बोली बेटे को बहुत खांसी हो रही हैं पहले बेटे के लिए दवाई ले आओं.मैं तुरंत बाज़ार की ओर चल दिया मेडिकल शॉप से खांसी की दवाई ली आप यक़ीन करे वो खाँसी की दवाई २० रुपये की आई,जैसे ही मैंनें २० रुपये दिये एक दम उन १०० रुपये की जगह १२० रुपये दिमाग़ में आये रास्ते भर सोचता रहा देखिए २० रुपये ज़्यादा लिए उन्हीं की दवाई लानी पड़ी,फिर मैंने कभी भी १२० रुपये नहीं लिए,उन चारों दोस्तों ने कई बार कहा मैं नहीं माना,आख़िर उन लोगों को भी १०० रुपये लेने पड़े.एक दिन क्या हुआ एक नये एचआर हेड आये और उन्होंने नोटिस जारी किया वो ही लोग रुके जहां पर काम ज़्यादा हैं और समय-समय पर ऑडिट होगा और कम से कम दो घंटे रुकना होगा,लोगों ने रुकना बंद कर दिया और मेरे से चल रहा मनमुटाव भी ख़त्म हो गया.मैं आज भी सोचता हूँ आख़िर उन्हीं २० रुपये की दवाई क्यों आई.